चीन में हो रहे एशियन गेम्स 2023 में पैदल चाल स्पर्धा में सोनभद्र के रामबाबू ने जीता कांस्य पदक, देश के साथ सोनभद्र जिला भी हुआ गौरवान्वित

(वकील खान)सोनभद्र : जहाँ चाह है वहां राह है बस लगन के साथ मेहनत करने की भरपूर कोशिश होनी चाहिए। फिर मंजिल पाने से कोई रोक नहीं सकता। ऐसा ही एक नज़ारा चीन में हो रहे एशियाई खेलों में देखने को मिला। सोनभद्र के लाल राम बाबू ने एशियन गेम्स में 35 किमी की पैदल चाल स्पर्धा में अपनी जोड़ीदार मंजू रानी के कांस्य पदक जीत कर अपने कर्म भूमि को गौरवान्वित होंने का अवसर दे दिया। जिले में इस समय अगर किसी की चर्चा हो रही है तो वो है राम बाबू की, अपने मेहनत की बदौलत राम बाबू ने वो मुकाम हासिल किया जो बड़े-बड़े खिलाड़ियों को सभी सुख-सुविधाएं होने के बावजूद हाथ नहीं लगता।

जी हां बचपन से कुछ कर दिखाने का जज़्बा लिए राम बाबू का एशियन गेम का सफर आसान नहीं था। सफर में सबसे बड़ा रोड़ा गरीबी और घर की बेबसी आड़े आ रही थी। राम बाबू का ख्वाब पूरा हो तो कैसे ये सोचकर राम बाबू बिना किसी प्लानिंग के सफर पर निकल लिए। गांव की पगडंडियों पर दोस्तों के साथ अभ्यास करते हुये रामबाबू अंतरराष्ट्रीय सफर तक पहुँचने के लिए क्या-क्या सहा ये हमारे समझ से परे है। फिर भी उनके हौसलों में कमी नहीं आई। गरीबी की वजह से खपरैल के मकान में बड़े ख्वाब को मूर्त रूप देना कोई सीखे तो राम बाबू से। कहा जाता है ने अपने लाल के सपने को पूरा करने के लिए माता-पिता किसी भी परिस्थितियों से गुज़रने से गुरेज नहीं करते। उनको तो बेटे का सपना ही जीवन का सबसे बड़ा दायित्व समझ में आता है। ठीक वैसे ही समाज के बातों से इतर रामबाबू के माता-पिता ने भी बेटे का सपना पूरा करने के लिए भरपूर सहयोग दिया। जहाँ गरीब पिता छोटेलाल खेतिहर मजदूर के रूप में काम कर अकेडमी का खर्च उठाते रहे तो वही माता मीना देवी ने गांव के पशुपालकों से दूध इकठ्ठा कर खोवा बना कर मधुपुर मंडी में बेच कर बेटे को सपना साकार करने में दिन-रात एक कर दिया। एशियन खेलों में अपनी प्रतिभा के बल पर जिले के प्रथम अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनने वाले रामबाबू की प्रारंभिक शिक्षा गांव के प्राथमिक विद्यालय में हुई उसके बाद नवोदय विद्यालय में चयन हो गया जहां उन्हों ने इंटर तक शिक्षा प्राप्त की है, घर मे दो बड़ी बहनों पूजा और किरन की शादी हो गयी है जब की छोटी बहन सुमन प्रयागराज में इंजीनियरिंग में दाखिला इस वर्ष लिया है और बदले वक्त में छोटी बहन के सपने साकार कर रहे हैं रामबाबू

सोनभद्र के रामबाबू अपने सहयोगी अंजू रानी के साथ कांस्य पदक जीतने के बाद से ही चर्चा में बने हुए हैं। लेकिन उनके पदक में पघ-पघ आने वाले रोड़े की कहानी से हर जानने वालों के आँशु थमेगी नहीं ये भी सत्य है। रामबाबू ने कोरोना काल में नौकरी छूटने के बाद लगे लॉकडाउन के दौरान मनरेगा में मजदूरी की थी। मजदूरी करते समय मिट्टी खोदने का काम किया करते थे। लेकिन काम के दौरान भी वो लोगों से चर्चा भी करते एक दिन वो आएगा जब आप अपने साथी पर गर्व करेंगे। उनके इस कॉन्फिडेंस के सभी मनरेगा साथी और गांववासी कायल थे। वो दुआ भी देते थे रामबाबू को बुजुर्ग तो जुगजुग जिओ मेरे लाल और करो कमाल की बात कहा करते थे। ये ऊँचाई उतनी ही मुश्किल थी जितनी मुश्किल किसी ऊंचे वस्तु को लगातार दो घण्टे देखने से होती है। रामबाबू का मुश्किलों का दौर ऐसा भी था कि मनरेगा में काम करने से पहले वेटर का भी काम करना पड़ा और लोगों की तरह तरह की बातों को बर्दाश्त करना पड़ा। डगर डगमगाते रहे पर लक्ष्य अडिग थे। इसी लक्ष्य ने आज उन्हें वो मुकाम दे दिया जिसके वो लायक थे।

इससे पहले भी राम बाबू पिछले वर्ष गुजरात के अहमदाबाद में राष्ट्रीय खेलों की प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीत कर चर्चा में आये थे और माता-पिता का जिले में नाम रोशन किया था। पर नाम होने के बाद भी समस्या जस की तस बनी हुई थी। रामबाबू की सबसे बड़ा पहला टास्क था अपने पिता के लिए पानी की समस्या का समाधान करना। मात्र एक हैंडपंप की दरकार को पूरा करना था।
घर के लिए रामबाबू के पिता एक किलोमीटर दूर से पानी लाने की बात अक्सर रामबाबू को खटकती थी। गोल्ड मैडल जितने के बाद लाइम लाइट में आ चुके राम बाबू के लिए मौका भी था दस्तूर भी था। मौके को भुनाते हुए हैंडपंप की मांग जिला प्रशासन से कर डाली। जिला प्रशासन भी उनकी जायज मांग को मानते हुए दरवाजे पर हैंडपंप लगवा दिया। पिता बेटे का सपना पूरा करता है तो बेटे का भी दायित्व होता है पिता की जीवन में खुशी का पल देना। जो एक बेटे के रूप में राम बाबू ने पूरा किया।

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